Chandra Yuti Ka Fal

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Dr. Yogesh Vyas

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चन्द्र युति और फल

   चन्द्र को मन और चंचलता का कारक माना जाता है! यह शांत व सौम्य ग्रह है, इसका रंग सफेद है ! चन्द्रमा जब कुण्डली में किसी अन्य ग्रह के साथ युति सम्बन्ध बनाता है तो कुछ ग्रहों के साथ इसके परिणाम शुभ फलदायी होते हैं तो कुछ ग्रहों के साथ इसकी शुभता में कमी आती है ! कुण्डली में चन्द्रमा किसी ग्रह के साथ युति बनाकर बैठा है तो इसके परिणामों को आप इस प्रकार देख सकते हैं--
1. चन्द्र व सूर्य युति:- अगर कुण्डली में चन्द्र के साथ सूर्य है तो आप कुटनीतिज्ञ होंगे ! इस युति के प्रभाव के कारण आपकी वाणी में नम्रता व कोमलता की कमी हो सकती है तथा आप अभिमानी हो सकते हैं, जिससे लोगों के प्रति आपका व्यवहार रूखा हो सकता है ! इन स्थितियों में सुधार के लिए आपको चन्द्र के उपाय करने चाहिए !
2.चन्द्र व मंगल युति:-  अगर कुण्डली में मंगल के साथ चन्द्र स्थित है तो आप परिणाम की चिंता किए बगैर अपने कार्य में जुट जाते हैं ! ऐसा कभी-कभी आपके लिए परेशानियों का कारण भी बन जाता है! आपकी कुण्डली में चन्द्र-मंगल की युति है तो वाणी पर नियंत्रण रखना आपके लिए बहुत ही आवश्यक होता है, क्योंकि बोल -चाल में आप आक्रोशित होकर ऐसा कुछ बोल सकते हैं जिनसे लोग आपसे नाराज़ हो सकते हैं !
3. चन्द्र व बुध युति :-  कुण्डली में चन्द्र के साथ बुध की युति शुभ फल देने वाली होती है !अगर आपकी कुण्डली में इन दोनों ग्रहों की युति बन रही है तो आप कूटनीतिज्ञ हो सकते हैं, आपको अपनी वाणी से लोगों को आसानी से जितना अच्छी तरह आता है,जिससे व्यावसायिक क्षेत्रों में आपको अच्छी सफलता मिलती है!
4. चन्द्र व गुरू युति :-  कुण्डली में चन्द्र के साथ गुरू की युति होना यह बताता है कि आप ज्ञानी होंगे, आपको शिक्षक एवं सलाहकार के रूप में अच्छी सफलता मिलेगी लेकिन आपको इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि मन में अभिमान की भावना नहीं आये ! इसके अलावा बिना मांगे किसी को सलाह न दें क्योंकि बिना मांगे दी गई सलाह के कारण लोग आपसे दूरियां बनाने की कोशिश करेंगे !
5.चन्द्र व शुक्र युति :-  जिस व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्रमा शुक्र के साथ युति सम्बन्ध बनाता है वह सौन्दर्य प्रिय होते हैं ! अगर आपकी कुण्डली में भी इन दोनों ग्रहों का युति है तो आप अधिक सफाई पसंद व्यक्ति होंगे,कला के क्षेत्रों से आपका लगाव रहेगा, आप लेखन में भी रूचि ले सकते हैं ! अत: आपको आलस से दूर रहना चाहिए, दिखावे की प्रवृति से भी आपको बचन चाहिए ! सुखों की चाहतों के कारण आप थोड़े आलसी हो सकते हैं !
6.चन्द्र व शनि युति :- अगर आपकी कुण्डली में चन्द्र व शनि की युति है तो आप ईमानदार, न्यायप्रिय मेहनती एवं परिश्रमी भी होंगे और मेहनत के दम पर जीवन में कामयाबी की तरफ अग्रसर होंगे ! न्यायप्रियता के कारण अन्याय के विरूद्ध आवाज उठाने से पीछे नहीं हटेंगे ! इस युति के प्रभाव के कारण कभी-कभी आप निराशावादी हो सकते हैं जिससे मन दु:खी हो सकता है ! अत: आपको आशावादी बने रहना चाहिए !
7. चन्द्र व राहु युति :- चन्द्र व राहु की युति कुण्डली में होने पर व्यक्ति रहस्यमयी विद्याओं में रूचि रखते हैं ! अगर आपकी कुण्डली में चन्द्र व राहु की युति बन रही है तो शिक्षा प्राप्त कर आप वैज्ञानिक बन सकते हैं, शोध कार्यों में भी आपको अच्छी सफलता मिल सकती है !
8.चन्द्र व केतु युति :- कुण्डली में चन्द्र के साथ केतु की युति होने पर व्यक्ति को समझ पाना कठिन होता है क्योंकि ऐसा व्यक्ति कब क्या कर बैठे यह समझना मुश्किल होता है! आप लिए उचित होगा किसी भी कार्य को करने से पूर्व उस पर अच्छी तरह विचार करलें अन्यथा अपने कार्यों के कारण आपका मन दु:खी हो सकता है! आपमें अच्छी बात यह है कि अपनी ग़लतियों से सबक लेंगे और अपने आस-पास की बुराईयों को दूर करने की कोशिश करेंगे!
          जन्म पत्रिका में किसी एक स्थान पर राहू एवं चंद्रमा की स्थिति हो तो चंद्र ग्रहण योग बनता है। इसमें भी राहू एवं चंद्रमा के अंशों में नौ अंश से कम का अंतर हो तो ग्रहण योग बनता है, परंतु नौ अंश से अधिक के फासले पर यह योग प्रभावकारी नहीं होता है। यदि दोनों ग्रहों की दूरी सात अंश से कम की हो तो इस योग का फल अधिक पड़ता है। राहू-चंद्रमा का अंतर डेढ़ अंश से कम होने पर यह योग पूर्ण प्रभावकारी रहता है।

 

राहू-चंद्रमा के योग का फल—

1. प्रथम भाव-  में हो तो खर्च दोष, दाँत का देरी से आना एवं धन संचय का योग बनता है।
2. द्वितीय भाव-  में खुद के परिश्रम से धन प्राप्त करना, खाने के शौकीन होना एवं बचपन में कष्ट पाने का योग बनता है।
3. तृतीय भाव-  में राहू-चंद्र की युति से शांत प्रकृति वाले, प्रसिद्धि पाने वाले एवं दाहिने कान में तकलीफ की संभावना आती है।
4. चतुर्थ भाव-   में जन्मभूमि से दूर जाना पड़ता है, मेहनत से प्रगति करते हैं । दान की प्रवृत्ति अधिक होती है।
5. पंचम भाव-  में राहू-चंद्र का ग्रहण जातक को बुद्धिमान, ईश्वर भक्त और कामी बनाता है।
6. छठे भाव-  में शरीर निरोगी रहता है। शत्रु बहुत उत्पन्न होते हैं, लेकिन जल्दी ही समाप्त हो जाते हैं। मातृपक्ष की चिंता होती है।
7. सप्तम भाव-  में ग्रहण योग दाम्पत्य जीवन को अच्छा करता है। व्यापार में हानि का योग बनता है, पलायनवादी दृष्टिकोण को जन्म देता है।
8. आठवें भाव-   में राहू-चंद्र की युति से अल्पायु में प्रसिद्धि मिलती है, स्त्री से धन प्राप्त होता है, आर्थिक हानि उठाना पड़ती है।
9. नौवें भाव-   में संतान की प्रगति होती है, लंबे प्रवास का योग बनता है, धार्मिक कार्य करते हैं और आलस्य आता है।
10. दशम भाव- में योगी, हल्का व्यापार करने वाला एवं सामाजिक कार्य में संलग्नता का फल देता है।
11. ग्यारहवें भाव-   में चंद्र-राहू की युति काम से प्रसिद्धि दिलाती है। अनैतिक तरीके से धन
एकत्र करने पर परेशानी उठाना पड़ती है। आँख या कान के रोग उत्पन्न होते हैं।
12. बारहवें भाव-   में इस योग का फल कुशल व्यवसायी के रूप में मिलनसारिता के रूप में एवं दाम्पत्य जीवन में तनाव की स्थिति उत्पन्न करता है।Top of Form

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